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परिचय
वास्तु विद्या (शिल्प विज्ञान) प्राचीन एवं शास्त्रोंक्त विद्या है, जो निर्माण के प्रकार एवं निर्माण का निर्धारण करती है, वास्तु शब्द शिल्प की अपेक्षा अत्यंत प्राचीन है वास्तु की उत्पत्ति वस्तु शब्द से हुई है, जिस प्रकार कोई भी निर्माण - द्रव्य - लकड़ी (काष्ठ), पाषाण (पत्थर), धातु एवं ईट आदि सब अभिनव निर्मित में परिणत होते है समस्त सृष्टी ही वस्तु है। परन्तु विश्वकर्मा जी द्वारा यह वास्तु में परिणत की गयी है एवं ब्रह्माजी की मानसिक सृष्टी है। इस अदभुत विद्या में मैने 1993 (31 साल पहले) अध्धयन एवं अभ्यास की शुरूआत की थी, तथा इसमें वृहद ग्रंथों का अध्धयन किया है जो मैने शीर्ष गुरूवर के सान्निधय में ज्ञान प्राप्त किया है। इस दौरान मैने काफी निर्माण करवाए है, पेशे से मैं सिविल इंजिनियर हूँ मैने दोनों क्षेत्र में समानान्तर कार्य करते हुये 14 हजार वास्तु प्रकरण का अध्धयन किया है, तथा इस दौरान मैंने काफी बड़ी अभियान्त्रिकी प्रयोजनाओं का भी निर्माण करवाया है, जैसे कि सुरंग, राष्ट्रीय राजमार्ग, राज्य राजमार्ग, बहुमंजीला इमारते, राष्ट्रीय पुल, गैस पाईप लाईन परियोजना, जल पाईप लाईन योजना, प्रकाशीत तंतु तार (ऑप्टिकल फाईबर केबल) , पेट्रोल पंप तथा सुरंग निर्माण के दौरान, मुझे राजकीय-विश्वकर्मा अवार्ड प्राप्त हुआ है। इस दौरान मैने वास्तु विद्या के नियमो के तहत काफी बड़ी फैक्ट्री, कारखाने, बहुमंजिला ईमारते, घर, मकान, दुकान, दफ्तर, मंदिर आदि का निर्माण वास्तु विद्या के नियमों के पालना करते हुये करवाया है, जिसके सुखद परिणाम, निर्माणकर्ता/मकान मालिक, को प्राप्त हो रहे हैं, जिसका वर्णन मैने वास्तु प्रकरण अध्धयन में दर्शाया है। सभी निर्माण मैने भारत के विभिन्न राज्यों सम्पन करवाये हैं। वास्तु पुरूष मंडल के नियमों की पालना वास्तु विद्या में की गयी है, वास्तु पुरूष मंडल में सभी देवता, देदीप्यमान, दृश्यमान, एंव महियान, हैं। ये सब महादेव, सुर्यदेव, की रश्मियों के नाम है, जो सुर्य की रश्मि-पुंज की विविध वर्णमाला की व्यख्या करते हैं, जिसका व्याख्यान वास्तु पुरूष मंडल में मिलता हैं। वास्तु विद्या के नियमों से निर्मित निर्माण, शुभदायक, सौभाग्य दायक, एवं सफलता दायक होता है, जो मानव को आर्थिक मानसिक, शारिरिक रूप से अच्छा करता है, वास्तु विद्या के नियम किसी भी निर्माण की शुभता एवं सफलता का आधार है, जैसे सूर्य एवं चन्द्रा की गति एवं शक्ति पुंज का प्रभाव धरती पर पड़ता है। पंच तत्वों की सारभौमिकता हमारे जीवन में दिखाई देती है उपरोक्त नियमों के तहत हम किसी भी वास्तु का निर्माण करते है तो सौभाग्यशाली होता हैं।
अश्वनी त्यागी बीई और एम.टेक। सिविल
वास्तु विद्या मानपति
जयपुर, राज

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know about Vastu Vidya

Vastu Vidya (Architecture Science) is an ancient and scriptural science that determines the types of construction and the principles of construction. The word "vaastu" is much older than the word "shilpa" (art/architecture). The word "vaastu" is derived from the word "vstu" which means that any construction material - wood, stone, metal, bricks etc. gets transformed into a new creation. The entire creation is a "vaastu", but it has been transformed into vaastu by Lord Vishwakarma and is the mental creation by Lord Brahma. I started studying and practicing this wonderful science 1993 (31 years ago) , and have studied extensive scriptures on it under the guidance of the highest holy gurus. During this period, I have undertaken many construction projects too, as I am a civil engineer by profession. While working parallelly in both fields, I have studied 14,000 cases of vastu. During this time, I have also overseen major engineering projects like tunnels, national highways, state highways, multi-storied buildings, National highway, bridges, gas pipeline projects, water pipeline projects, optical fiber cable laying and petroleum projects. During a tunnel construction project, I was awarded by CIDC -Vishwakarma Award. Under the principles of vaastu vidya, I have constructed many large factories, mills, multi-storied buildings, commercial complexes, houses, shops, offices, temples etc., the pleasant results of which have been

experienced by the builders/house owners, as described in my case studies on vaastu. I have executed all these construction projects across various states in India. The principles of the Vaastu Purusha Mandala have been followed in Vaastu Vidya. In the Vaastu Purusha Mandala, all deities - the radiant or resemblement , the visible, and the land vehicle the revered - are present. These are all names of the rays of Lord Shiva and Surya deva, which explain the various spectral colours that comprise the bundle of sun's rays, the exposition of which is found in the Vaastu Purusha Mandala. Constructions made according to the principles of Vaastu Vidya are auspicious, bring prosperity and success, and give the benefits to a person financially, mentally and physically. The principles of Vaastu Vidya form the basis of any construction's auspiciousness and success, just like the motions and forces of the sun and moon impact are coming on the earth. The omnipresence of the five elements is visible in our lives. If we construct any building according to the above principles, it becomes prosperous.


Ashwani Tyagi BE and M.Tech. Civil
Vastu Vidya Maanpatii
Jaipur, Rajasthan